ऋतुचर्या: आयुर्वेद के अनुसार ऋतु-आधारित जीवनशैली
आयुर्वेद में स्वस्थ जीवन के लिए ऋतुचर्या का विशेष महत्व बताया गया है। ऋतुचर्या का अर्थ है – ऋतुओं के अनुसार आहार, विहार और दिनचर्या का पालन करना। वर्षभर में मौसम बदलते रहते हैं, जिससे शरीर पर विभिन्न प्रभाव पड़ते हैं। यदि हम इन परिवर्तनों के अनुसार जीवनशैली को अनुकूलित करें, तो हम कई बीमारियों से बच सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं।
आइए जानते हैं आयुर्वेद में वर्णित छह ऋतुएं और उनके अनुसार अपनाई जाने वाली दिनचर्या।
1. शिशिर ऋतु
विशेषताएँ: यह सर्दियों का सबसे ठंडा समय होता है, जब वातावरण शुष्क और ठंडा रहता है। वात और कफ दोष में वृद्धि होती है।
आहार:
- गर्म, पौष्टिक और ऊर्जा देने वाले भोजन करें।
- घी, तिल का तेल, गुड़, शहद, सूखे मेवे, और गरम मसाले (अदरक, दालचीनी, काली मिर्च) का सेवन करें।
- गरम पानी पिएं और ठंडे पदार्थों से बचें।
विहार:
- सूर्योदय के समय धूप सेंकें।
- तिल के तेल से मालिश करें।
- भारी व्यायाम करें और शरीर को गर्म रखें।
2. वसंत ऋतु
विशेषताएँ: इस ऋतु में ठंडक कम होने लगती है और कफ दोष बढ़ता है।
आहार:
- हल्का, सुपाच्य और गर्म भोजन करें।
- शहद, हल्दी, नीम, त्रिफला और अदरक का सेवन करें।
- दूध, दही और भारी मिठाइयों से बचें।
विहार:
- नियमित व्यायाम करें और योग-प्राणायाम अपनाएं।
- सुबह जल्दी उठें और हल्की मालिश करें।
- शरीर को शीतल रखने के लिए नीम-गुलाब जल से स्नान करें।
3. ग्रीष्म ऋतु
विशेषताएँ: इस मौसम में गर्मी तेज होती है, जिससे पित्त दोष बढ़ता है।
आहार:
- ठंडे और जलयुक्त पदार्थ लें, जैसे नारियल पानी, बेल का शरबत, गन्ने का रस।
- खीरा, तरबूज, खरबूजा, सत्तू, और दूध-चावल जैसे शीतल पदार्थों का सेवन करें।
- तले-भुने और तीखे मसालेदार भोजन से बचें।
विहार:
- हल्के सूती कपड़े पहनें और धूप से बचें।
- दोपहर में आराम करें और बहुत अधिक परिश्रम न करें।
- ठंडी छांव में बैठकर ध्यान करें।
4. वर्षा ऋतु
विशेषताएँ: इस समय वात दोष बढ़ता है, जिससे पाचन कमजोर हो सकता है।
आहार:
- हल्का, गरम और सुपाच्य भोजन करें।
- अदरक, हींग, सोंठ, तुलसी और हल्दी का सेवन करें।
- दूषित जल और भारी भोजन से बचें।
विहार:
- अधिक नमी से बचने के लिए सूखे और साफ कपड़े पहनें।
- तेल मालिश करें और व्यायाम कम करें।
- ज्यादा बाहर खाने से बचें, खासकर स्ट्रीट फूड।
5. शरद ऋतु
विशेषताएँ: इस समय पित्त दोष का प्रभाव अधिक रहता है।
आहार:
- कड़वे और ठंडे पदार्थ जैसे आंवला, नीम, गिलोय, घी का सेवन करें।
- मसालेदार और तले-भुने भोजन से बचें।
- दूध और घी का सेवन करें।
विहार:
- प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें।
- सुबह-शाम ठंडी हवा में टहलें।
- सिर और पैरों में तेल लगाकर मालिश करें।
6. हेमंत ऋतु
विशेषताएँ: यह ऋतु शीतल और वात-कफ दोष को बढ़ाने वाली होती है।
आहार:
- गर्म, पौष्टिक और तैलीय भोजन करें।
- घी, तिल, दूध, सूखे मेवे, बाजरा, गुड़ और शहद का सेवन करें।
- ठंडी चीजों से बचें और गुनगुने पानी का सेवन करें।
विहार:
- सूरज की रोशनी में समय बिताएं।
- तेल मालिश करें और ऊनी वस्त्र पहनें।
- सुबह व्यायाम और योग करें।
निष्कर्ष
आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या का पालन करने से शरीर प्राकृतिक परिवर्तनों के अनुरूप ढल जाता है, जिससे रोगों से बचाव होता है और जीवन ऊर्जा से भरपूर रहता है। अगर हम अपने आहार, विहार और दिनचर्या को मौसम के अनुसार बदलें, तो स्वस्थ, निरोगी और दीर्घायु जीवन जी सकते हैं।
क्या आप अपनी दिनचर्या में ऋतुचर्या अपनाते हैं? अपने अनुभव हमें कमेंट में बताएं!
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